उज्जैन। मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां बहुत सारी परंपराएं मौजूद हैं। खास बात यह है कि भगवान शिव की स्थली उज्जैन के प्राचीन मंदिर एवं पूजा स्थल जहां एक ओर पुरातत्व शास्त्र की बहुमूल्य धरोहर हैं, वहीं दूसरी ओर ये हमारी आस्था एवं विश्वास के आदर्श केंद भी हैं।
बहुमूल्य धरोहर होने के कारण यहां की संस्कृति के पूरे देश में जानी जाती है। हालांकि इस मामले में कुछ परंपराएं ऐसी भी हैं जो बहुत ही चौंका देने वाली हैं।
हम यहां महिला नागा साधु बनने की परंपरा से रूबरू करवाने जा रहे है जो अपने आप में ही चौंकाने वाली बात है। महिला नागा साधु बनने की प्रकिया आपको हैरान कर देगी।
पुरुष ही नहीं महिला भी बनती हैं नागा साधु:
हर कोई इस बात को जानता है कि पुरुष ही नागा साधु बनते हैं लेकिन आपको ये जानकर थोड़ा आश्चर्य जरूर होगा कि महिलाएं भी नागा साधु बनती हैं।
बता दें कि आने वाले कुंभ के मेले में महिला नागा साधु भी शामिल होने जा रही हैं। महिला नागा साधुओं की भी अपनी रहस्यमयी दुनिया होती है। इस बारें में आप सोच भी नहीं सकते है कि वे महिला नागा साधु बनने के लिए कितने तप करती है। महिला नागा साधुओं की दुनिया पुरुष नागा साधुओं के जैसी ही होती हैं।
10 साल तक पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन:
किसी भी महिला को महिला नागा साधु बनने के लिए 10 साल तक पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करना सबसे जरूरी काम होता है। अगर महिला ऐसा नहीं कर पाती है तो महिला नागा साधु नहीं बन सकती।
10 साल तक पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करने के बाद ही इस बात का निर्णय लिया जाता है कि महिला को नागा साधु बनाया जा सकता है। इस बात का निर्णय महिला नागा साधु की गुरु करती है। इसके बाद ही आगे के सारे काम किए जाते हैं।
किया जाता है मुंडन :
महिला नागा साधु बनने के लिए मुंडन किया जाता है। इसके अलावा, उसकी पूरी सम्पर्णता सुनिश्चित करने के लिए उसे यह साबित करना होता है कि वह अपने परिवार से दूर हो चुकी है और अब किसी भी बात का मोह नही है।
इस बात की पुष्टि करने के लिए अखाड़े के साधु-संत महिला के घर परिवार की पूरी तरह से सही जांच करते है। कुंभ में नागा साधुओं के साथ महिला सन्यासन भी शाही स्नान करती हैं। नागा सन्यासन को अखाड़े के सभी साधू और संत माता कहते हैं और पुरा सम्मान करते हैं।
करना होता है पिंडदान:
महिला को महिला नागा साधु बनने के बाद पुरुष नागा साधू के समान नहीं रहना पड़ता है। पुरुष नागा साधू और महिला नागा सन्यासन के बीच कपड़ो का फर्क होता है। महिला नागा सन्यासनें नग्न स्नान नहीं करती हैं, उन्हें कपड़े पहनने की छूट रहती है।
महिला नागा सन्यासन को सन्यासन बनने से पहले स्वंय का पिंडदान और तर्पण करना पड़ता है यानि वो खुद को मृत मान लेती हैं।
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